भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बढ़ती लोकप्रियता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता ने एक नए युग की शुरुआत की है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईवी को सफल बनाने के लिए सिर्फ वाहन निर्माण ही नहीं, बल्कि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर भी उतना ही महत्वपूर्ण है? हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार भारत को 2030 तक 40 लाख चार्जिंग स्टेशन की आवश्यकता होगी । आइए, इस ब्लॉग में जानते हैं कि यह आंकड़ा क्यों महत्वपूर्ण है, और भारत इस दिशा में कैसे आगे बढ़ रहा है।
इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता दबाव और चार्जिंग की चुनौती
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और प्रदूषण के कारण ईवी की मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत सरकार ने 2030 तक 30% निजी वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए अनुमानित 8 करोड़ ईवी सड़कों पर होंगे । लेकिन समस्या यह है कि वर्तमान में भारत में प्रति 135 ईवी पर केवल 1 सार्वजनिक चार्जर है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह अनुपात 6 से 20 ईवी प्रति चार्जर है । यह अंतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: वर्तमान स्थिति और सरकारी प्रयास
क्या मौजूदा हालात है ?
दिसंबर 2024 तक, भारत में 25,202 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन operational हैं, जिनमें महाराष्ट्र (3,728), कर्नाटक (5,765), और उत्तर प्रदेश (1,989) अग्रणी राज्य हैं ।
2023 से 2024 के बीच, चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 6,586 से बढ़कर 12,146 हो गई, जो सरकारी प्रयासों की सफलता दर्शाता है ।
सरकारी योजनाएं और निवेश
फेम-II योजना : इसके तहत 10,900 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है, जिसमें 2,000 करोड़सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों के लिए हैं
PM E-DRIVE योजना : इसके अंतर्गत 80-100% सब्सिडी प्रदान की जाती है। उदाहरण के लिए, ₹10 लाख के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सिर्फ ₹2 लाख खर्च होंगे ।
ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस नियम 2022: नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए इस नियम से सौर और पवन ऊर्जा आधारित चार्जिंग को प्रोत्साहन मिलेगा ।
3. 40 लाख चार्जिंग स्टेशन: यह आंकड़ा कैसे आया?
रिपोर्ट “चार्जिंग एहेड सैकंड” के अनुसार, 8 करोड़ ईवी को सपोर्ट करने के लिए सार्वजनिक और अर्ध-सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों का घनत्व बढ़ाना होगा । इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
1.शहरीकरण और यातायात पैटर्न : महानगरों में ईवी का उपयोग अधिक होगा, इसलिए चार्जिंग प्वाइंट्स की संख्या बढ़ानी होगी।
2. बैटरी तकनीक : वर्तमान में अधिकांश ईवी की बैटरी क्षमता सीमित है, जिससे बार-बार चार्जिंग की आवश्यकता होती है।
3. ग्रामीण पहुंच : ग्रामीण क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों की कमी ईवी अपनाने में बाधक है।
रास्ते में क्या रोड़े हैं?
भूमि अधिग्रहण: शहरी क्षेत्रों में जगह की कमी और जटिल नियम ।
ग्रिड विश्वसनीयता: बिजली आपूर्ति में अनियमितता, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में ।
निवेश की आवश्यकता: चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की लागत ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक हो सकती है ।
तकनीकी मानकों का अभाव: अलग-अलग ईवी मॉडल्स के लिए यूनिवर्सल चार्जिंग प्रोटोकॉल की कमी ।
भविष्य की राह: नवाचार और सहयोग
बैटरी स्वैपिंग और स्मार्ट चार्जिंग
बैटरी स्वैपिंग: यह मॉडल दोपहिया और तिपहिया वाहनों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसमें खाली बैटरी को तुरंत चार्ज्ड बैटरी से बदल दिया जाता है, जिससे समय की बचत होती है ।
IoT आधारित स्मार्ट चार्जिंग: यह सिस्टम ऊर्जा उपयोग को ऑप्टिमाइज़ करता है और उपयोगकर्ताओं को रियल-टाइम डेटा प्रदान करता है ।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP)
कैलिफोर्निया और सिंगापुर जैसे देशों से सीखते हुए, भारत को PPP मॉडल को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इससे निवेश बढ़ेगा और तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ मिलेगा ।
ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस
ग्रामीण इलाकों में सोलर-आधारित चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने से ईवी की पहुंच बढ़ेगी और ग्रिड पर निर्भरता कम होगी।
भविष्य में हम क्या कर सकते हैं?
भारत की ईवी क्रांति केवल सरकारी प्रयासों से नहीं, बल्कि जनभागीदारी से सफल होगी। हर नागरिक को ईवी अपनाने, चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने, और जागरूकता फैलाने में योगदान देना चाहिए। 40 लाख चार्जिंग स्टेशन का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण है, लेकिन नवाचार, नीतिगत समर्थन और सामूहिक प्रयासों से यह संभव है।