महाकुंभ 2025: क्या गंगा की डुबकी सुरक्षित है? संगम की जल गुणवत्ता और कचरा प्रबंधन पर उठते सवाल

प्रयागराज की पावन धरती पर इस बार महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। 4000 हेक्टेयर में फैले इस मेले में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। लेकिन गंगा में डुबकी लगाने की परंपरा इस बार सवालों के घेरे में है। संगम की जल गुणवत्ता और कचरा प्रबंधन की स्थिति को लेकर गंभीर चिंताएं उठ रही हैं।

डिजिटल और हरित कुंभ का दावा, लेकिन हकीकत क्या है?

2025 का कुंभ डिजिटल महाकुंभ और हरित कुंभ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। दावा किया गया है कि पूरे मेले में कचरे का प्रभावी प्रबंधन होगा। लेकिन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की हालिया सुनवाई में प्रयागराज नगर निगम से कई कड़े सवाल पूछे गए। जैसे:

शहर के 14 लाख टन पुराने कचरे का क्या हुआ?

रोजाना निकलने वाले कचरे का निपटान कैसे हो रहा है?
नगर निगम इन सवालों का स्पष्ट जवाब देने में असमर्थ रहा है।

गंगा की जल गुणवत्ता पर उठे सवाल

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर द्वारा दायर याचिका में गंगा जल की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए गए। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जल की गुणवत्ता संबंधी डेटा सार्वजनिक नहीं कर रहे। संगम पर स्नान करने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के कारण नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ रहा है।

2019 और 2025 की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण

2019 के अर्धकुंभ में 13 करोड़ लोगों ने स्नान किया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार:
जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD):2.5 से 8.6 मिलीग्राम/लीटर (3 मिलीग्राम/लीटर की सीमा से अधिक)

फीकल कॉलिफॉर्म:निर्धारित मानकों से 10 गुना अधिक
2025 में हालात और खराब हो चुके हैं। जनवरी 2025 में संगम पर BOD स्तर 4 मिलीग्राम/लीटर मापा गया, जो सुरक्षित सीमा से ऊपर है।

प्रदूषण कम करने के प्रयास, लेकिन कितने प्रभावी?

सरकार ने मानव अपशिष्ट और सीवेज के उपचार के लिए हाई-टेक समाधान अपनाए हैं:
1. हाइब्रिड ग्रैन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित यह प्रणाली प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से हटाने में सक्षम है।
2. 1.45 लाख शौचालय:खुले में शौच मुक्त योजना के तहत स्थापित किए गए हैं।
3. नमामि गंगे कार्यक्रम: गंगा सफाई के लिए अब तक 40,000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

कुंभ मेले के बाद गंगा का भविष्य

मेले के दौरान करोड़ों लोग संगम में स्नान करेंगे। हालांकि, सरकार ने जल को स्वच्छ बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि गंगा और यमुना में मृत मछलियों का मिलना आम हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े आयोजन के बाद नदी का पारिस्थितिकी तंत्र और अधिक क्षतिग्रस्त हो सकता है।

समस्या का समाधान क्या है?

1. पारदर्शिता:जल गुणवत्ता से संबंधित डेटा नियमित रूप से सार्वजनिक किया जाए।
2. स्थायी कचरा प्रबंधन प्रणाली: अस्थायी व्यवस्था के बजाय दीर्घकालिक समाधान पर जोर हो।
3. सख्त निगरानी:सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स और अन्य तकनीकों की प्रभावशीलता की निगरानी हो।
4. जागरूकता: श्रद्धालुओं को नदी संरक्षण और सफाई के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाए।
महाकुंभ 2025 एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों की अनदेखी नहीं की जा सकती। गंगा की पवित्रता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल दावों से नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत में बदलाव से ही गंगा और यमुना का अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है। तो, इस महाकुंभ में गंगा की डुबकी लगाने से पहले जल की स्थिति को समझें और नदी के संरक्षण में अपना योगदान दें।

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