कृषि खाद्य प्रणालियों में नाइट्रोजन का स्थायी प्रबंधन आवश्यक है। इस लेख में, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE), फसलों और पशुपालन में नाइट्रोजन प्रबंधन, इसके पर्यावरणीय प्रभाव और टिकाऊ कृषि प्रणाली के लिए संभावित नीतिगत उपायों पर चर्चा करेंगे।
नाइट्रोजन (N) कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का एक आवश्यक तत्व है, जो फसल उत्पादन और पशुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पौधों के विकास, प्रोटीन संश्लेषण और जैविक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक तत्व होता है। हालांकि, नाइट्रोजन का अत्यधिक या अनुचित उपयोग मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण का कारण बन सकता है। इससे जलवायु परिवर्तन, मृदा उर्वरता में गिरावट और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न होता है।
नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) का महत्व
नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) वह अनुपात है, जिसमें फसलें या पशु इसे अवशोषित करते हैं। उच्च NUE का अर्थ है कि कम मात्रा में नाइट्रोजन का उपयोग करके अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे नाइट्रोजन की हानि कम होती है।
वैश्विक स्तर पर NUE में परिवर्तन
1960 के दशक में NUE लगभग 56% था, लेकिन 1980 के दशक में यह घटकर 40% रह गया है।
2022 में, NUE बढ़कर 56% हो गया, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में इसकी स्थिरता को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं।
कुछ देशों में अत्यधिक नाइट्रोजन उपयोग के कारण प्रदूषण बढ़ा है, जबकि कुछ क्षेत्रों में नाइट्रोजन की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरता में गिरावट आई है।
उदाहरण के लिए, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में कृषि सुधारों और नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण NUE में वृद्धि हुई है। दूसरी ओर, दक्षिण एशिया और चीन जैसे क्षेत्रों में अधिक नाइट्रोजन उर्वरक उपयोग के कारण NUE अपेक्षाकृत कम है।
फसल प्रणाली में नाइट्रोजन प्रबंधन
कृषि प्रणाली में नाइट्रोजन प्रबंधन
के तहत निम्नलिखित प्रमुख तत्व आते हैं:
1. संतुलित उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी की जरूरतों के अनुसार उर्वरकों का संतुलित उपयोग किया करना चाहिए।
फसल चक्र में दलहनी फसलों को शामिल करके प्राकृतिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
उर्वरकों का सही समय और सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिए जैसे कि (4R सिद्धांत – सही स्रोत, सही मात्रा, सही समय, सही स्थान)।
2. जैविक खाद और कम्पोस्ट का उपयोग
रासायनिक उर्वरकों की बजाय जैविक खाद, गोबर खाद, हरी खाद और कंपोस्ट का उपयोग नाइट्रोजन स्थिरता में सहायक होता है। यह मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को सक्रिय करता है और जल धारण क्षमता में में वृद्धि करता है।
3. जल और मिट्टी संरक्षण तकनीकें
जैविक मल्चिंग से नाइट्रोजन लीचिंग को कम किया जा सकता है।
ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर तकनीक से नाइट्रोजन का कुशल प्रबंधन किया जा सकता है।
4. उन्नत तकनीकों का उपयोग
धीमी गति से घुलने वाले और नैनो उर्वरकों का उपयोग करना।
जैव-उत्तेजक (बायोस्टिमुलेंट्स) और सूक्ष्मजीवी उर्वरकों का उपयोग करके नाइट्रोजन को प्रभावी तरीके से अवशोषित करना।
पशुपालन में नाइट्रोजन दक्षता
पशुपालन नाइट्रोजन उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह नाइट्रोजन उत्सर्जन का भी एक प्रमुख स्रोत है।
1. संतुलित आहार प्रबंधन
उच्च प्रोटीन आहार के बजाय संतुलित आहार देना जिससे नाइट्रोजन उत्सर्जन कम हो सके।
पशु आहार में वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों का उपयोग करना।
2. पशु मल-मूत्र प्रबंधन
मल-मूत्र को जैविक खाद के रूप में उपयोग कर इसे कृषि चक्र में शामिल करना।
बायोगैस संयंत्रों के माध्यम से नाइट्रोजन उत्सर्जन को नियंत्रित करना।
3. चरागाह प्रबंधन
पशुओं के लिए प्राकृतिक चरागाहों का बेहतर प्रबंधन कर नाइट्रोजन चक्र को संतुलित रखा जा सकता है।
मिश्रित खेती-चरागाह प्रणाली अपनाना चाहिए, जिससे भूमि की उत्पादकता बढ़े और नाइट्रोजन अपशिष्ट कम हो।
नाइट्रोजन हानि और पर्यावरण प्रभाव
अत्यधिक नाइट्रोजन उपयोग से कई प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न होती हैं:
1. जल प्रदूषण – नाइट्रेट जल में घुलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं को पैदा कर सकता व साथ जल निकायों को अवरूद्ध कर सकता है।
2. वायु प्रदूषण – नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अमोनिया (NH3) उत्सर्जन से वायु गुणवत्ता प्रभावित होती है।
3. जलवायु परिवर्तन – नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) एक ग्रीनहाउस गैस है, जो जलवायु परिवर्तन को गति देता है।
4. मिट्टी की उर्वरता में गिरावट – अत्यधिक नाइट्रोजन उपयोग से मिट्टी की संरचना खराब होती है और जैव विविधता प्रभावित होती है।
स्थायी समाधान और नीति उपाय
स्थायी नाइट्रोजन प्रबंधन के लिए निम्नलिखित नीतियों और उपायों को अपनाया जाना चाहिए:
1. सर्कुलर बायोइकोनॉमी को अपनाना
कृषि और पशुपालन के उप-उत्पादों का पुनः उपयोग करके नाइट्रोजन चक्र को संतुलित करना।
2. उर्वरक उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सरकारी नियम
यूरोप की तरह नाइट्रेट डायरेक्टिव और पर्यावरणीय सब्सिडी लागू करना।
3. नाइट्रोजन हानि को कम करने के लिए निवेश
जैविक उर्वरकों और नवाचारों में सरकारी निवेश बढ़ाना।
किसानों को वित्तीय सहायता और जागरूकता कार्यक्रम उपलब्ध कराना।
4. तकनीकी नवाचार
ड्रोन और सेंसर आधारित उर्वरक प्रबंधन को अपनाना।
नाइट्रोजन अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उन्नत कृषि उपकरणों का उपयोग करना।
5. जागरूकता और शिक्षा
किसानों को नाइट्रोजन प्रबंधन की तकनीकों पर प्रशिक्षण देना।
जैविक खेती और टिकाऊ कृषि तकनीकों को बढ़ावा देना।
हम भविष्य में क्या कर सकते हैं?
संतुलित और कुशल नाइट्रोजन प्रबंधन से कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी संभव है। उन्नत तकनीकों, सतत कृषि नीतियों और किसानों की भागीदारी से हम एक टिकाऊ कृषि प्रणाली विकसित कर सकते हैं। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों को भी कम किया जा सकेगा।
भविष्य में, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग और नीति सुधारों की आवश्यकता होगी। एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर हम नाइट्रोजन प्रबंधन को अधिक टिकाऊ और प्रभावी बना सकते है