दुनिया भर के वैज्ञानिक आज एक अद्भुत सपना देख रहे हैं—विलुप्त हो चुके जीवों को पुनर्जीवित करना। मैमथ जैसे प्राचीन जानवरों को वापस लाने की यह कोशिश आधुनिक जेनेटिक इंजीनियरिंग की ताकत को दिखाती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह प्रयास धरती के भविष्य के लिए उम्मीद की किरण है या मानवता प्रकृति के नियमों को चुनौती देने की हद पार कर रही है?
साइबेरिया से शुरू होती कहानी: मैमथ की वापसी
साइबेरिया के पिघलते पर्माफ़्रॉस्ट (हिममृदा) में मिले मैमथ के अवशेषों ने इस सपने को हकीकत के करीब पहुंचा दिया है। वैज्ञानिकों ने हज़ारों साल पुराने DNA के नमूनों को जमा करके उनका पुनर्निर्माण किया है। अब यह DNA, मैमथ के सबसे करीबी रिश्तेदार—एशियाई हाथी में डाला जा सकता है। इस प्रक्रिया का लक्ष्य एक हाइब्रिड जानवर बनाना है, जो मैमथ जैसा दिखे और साइबेरिया या अलास्का के ठंडे मैदानों में जीवित रह सके। यह प्रयोग न सिर्फ़ विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने की दिशा में कदम है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने का भी एक तरीका माना जा रहा है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि मैमथ जैसे बड़े जानवर पर्माफ़्रॉस्ट को स्थिर करके कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में मार्सुपियल भेड़िये का पुनर्जन्म
ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिक एक और विलुप्त प्रजाति थाइलासिन (मार्सुपियल भेड़िया) को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं। संग्रहालयों में संरक्षित भ्रूणों से निकाले गए जेनेटिक मटीरियल को उनके रिश्तेदार, मार्सुपियल चूहों में डाला जा रहा है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो 1930 के दशक में विलुप्त हुए इस जीव को फिर से ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में देखा जा सकता है। यह प्रक्रिया CRISPR जैसी जीन-एडिटिंग तकनीकों पर निर्भर है, जो DNA के विशिष्ट हिस्सों को बदलने की अनुमति देती है।
अफ़्रीका में सफ़ेद गैंडों के लिए आख़िरी उम्मीद
अफ़्रीका के उत्तरी सफ़ेद गैंडे विलुप्ति के कगार पर हैं। दुनिया में केवल दो मादाएं बची हैं, और कोई नर नहीं। लेकिन बर्लिन के वैज्ञानिकों ने दशकों पहले संरक्षित किए गए नर गैंडों के शुक्राणुओं का उपयोग करके इन मादाओं के अंडों को निषेचित करने का प्रयास किया है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) तकनीक से नए गैंडे पैदा किए जा सकेंगे। यह प्रक्रिया न सिर्फ़ इस प्रजाति को बचाने का मौका देती है, बल्कि भविष्य में अन्य लुप्तप्राय जानवरों के लिए भी मिसाल बन सकती है।
विवाद: क्या विज्ञान ‘भगवान’ बनने की कोशिश कर रहा है?
इन कोशिशों के समर्थकों का मानना है कि यह तकनीक प्रकृति की खोई हुई विविधता को वापस ला सकती है और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में मदद कर सकती है। लेकिन आलोचक चेतावनी देते हैं कि यह प्रकृति के साथ खिलवाड़ है। उनके अनुसार, विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने से अनचाहे परिणाम हो सकते हैं, जैसे नई बीमारियों का उभरना या मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है।
इसके अलावा, कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि यह प्रयास लोगों को वर्तमान संकटों से भटका सकता है। जैसे, आख़िर क्यों इंसान विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने में अरबों खर्च करे, जबकि हाथी, बाघ, या मधुमक्खियों जैसे जीव आज भी अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं? क्या यह प्रकृति संरक्षण के असली मुद्दों से ध्यान हटाने जैसा नहीं है?
नैतिकता और भविष्य के सवाल
इन प्रयोगों के पीछे सबसे बड़ा सवाल नैतिकता का है। क्या मनुष्य को यह अधिकार है कि वह विलुप्त प्रजातियों को अपनी इच्छा से वापस लाए? क्या यह जीवन के प्राकृतिक चक्र में दखल नहीं है? कुछ लोग इसे डी-एक्सटिंक्शन(विलुप्ति उलटने) की शुरुआत मानते हैं, तो कुछ इसे मानव अहंकार का प्रतीक मानते हैं ।
हालांकि, इन बहसों के बीच एक बात स्पष्ट है: विज्ञान ने हमें एक ऐसी ताकत दे दी है जो कभी कल्पना से परे थी। अब यह हम पर निर्भर है कि हम इसका उपयोग कैसे करते हैं—क्या प्रकृति के साथ सहयोग के लिए, या फिर उस पर राज करने के लिए?
संभावनाएं और सीमाएं
विलुप्त प्रजातियों को वापस लाने का सपना मानव जिज्ञासा और प्रगति की मिसाल है। लेकिन इसके साथ ही, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति एक जटिल ताना-बाना है, जिसमें हर धागा दूसरे से जुड़ा है। अगर हम DNA को दोबारा जोड़ भी दें, तो क्या हम उस जीव के लिए उसका प्राकृतिक आवास, उसकी सामाजिक संरचना, या उसके भोजन को वापस ला पाएंगे? शायद नहीं।
इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम तकनीक का उपयोग सावधानी से करें। विलुप्ति को उलटने की कोशिशों के साथ-साथ, मौजूदा प्रजातियों के संरक्षण पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए। आख़िरकार, प्रकृति की रक्षा करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम उसे नष्ट होने से बचाएं, न कि उसे फिर से बनाने की कोशिश करें।