मैंग्रोव वनस्पति तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली विशेष प्रकार की वनस्पति है, जो न केवल जैव विविधता को समृद्ध करती है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल ही में एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में मैंग्रोव के संरक्षण और पुनर्वास से कार्बन उत्सर्जन में 50% तक की कमी लाई जा सकती है।
मैंग्रोव की विशेषताएँ और महत्व
मैंग्रोव पेड़ और झाड़ियाँ खारे पानी में पनपती हैं और उनकी जड़ें मिट्टी में गहराई तक जाती हैं, जिससे वे कार्बन को लंबे समय तक संचित करने में सक्षम होती हैं। इनकी जड़ें न केवल कार्बन को अवशोषित करती हैं, बल्कि तटीय क्षरण को रोकने, समुद्री जीवन को आश्रय देने और प्राकृतिक आपदाओं जैसे सुनामी और चक्रवात से तटीय क्षेत्रों की रक्षा करने में भी सहायक हैं।
दक्षिण-पूर्व एशिया में मैंग्रोव की स्थिति
दक्षिण-पूर्व एशिया में विश्व के कुल मैंग्रोव वनों का लगभग एक तिहाई हिस्सा स्थित है। हालांकि, शहरीकरण, कृषि विस्तार और जलीय कृषि के कारण पिछले कुछ दशकों में इन वनों का तेजी से क्षरण हुआ है। इसका परिणाम न केवल जैव विविधता के नुकसान में हुआ है, बल्कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में भी वृद्धि हुई है।
कार्बन उत्सर्जन में कमी में मैंग्रोव की भूमिका
अध्ययनों से पता चला है कि मैंग्रोव वन पारिस्थितिकी तंत्र भूमि आधारित उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक कार्बन को अवशोषित कर सकते हैं। इसका मतलब है कि यदि हम मैंग्रोव वनों का संरक्षण और पुनर्वास करते हैं, तो हम वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को काफी हद तक कम कर सकते हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में, जहां मैंग्रोव वनों की बड़ी मात्रा मौजूद है, इनका संरक्षण क्षेत्रीय कार्बन उत्सर्जन में 50% तक की कमी ला सकता है।
भारत की पहल और प्रतिबद्धता
भारत ने मैंग्रोव संरक्षण के महत्व को समझते हुए ‘मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट’ (MAC) में शामिल होने का निर्णय लिया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस अवसर पर कहा कि भारत ने लगभग पांच दशकों से मैंग्रोव बहाली में विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया है और वह अपने अनुभव के कारण वैश्विक ज्ञान आधार में योगदान कर सकता है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मैंग्रोव वनीकरण से एक नया कार्बन सिंक बनाना और मैंग्रोव वनों की कटाई के चलते होने वाले उत्सर्जन को कम करना देशों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्यों को पूरा करने और कार्बन तटस्थता हासिल करने के दो व्यवहार्य तरीकों को अपनाकर जल्दी इन लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, भारत ने 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन सिंक बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। मैंग्रोव वनों की कटाई से उत्सर्जन को कम करना और नए कार्बन सिंक बनाना इस लक्ष्य को प्राप्त करने के दो प्रमुख उपाय अपनाएं हैं।
वैश्विक सहयोग और आगे की राह
मैंग्रोव संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ने ‘मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट’ (MAC) की शुरुआत की है, जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, स्पेन और श्रीलंका भी शामिल हो गए हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और बहाली के लिए वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देना है।
हम क्या कर सकते हैं?
मैंग्रोव वनों का संरक्षण न केवल जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी एक प्रभावी साधन है। दक्षिण-पूर्व एशिया में मैंग्रोव वनों के संरक्षण और पुनर्वास से कार्बन उत्सर्जन में 50% तक की कमी लाई जा सकती है, जो क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। भारत जैसे देशों की सक्रिय भागीदारी और वैश्विक सहयोग से हम इस दिशा में सार्थक प्रगति कर सकते हैं।