बजट 2025-26: जहाज तोड़ने की रीसाइक्लिंग से बनेगी ‘गोल्डन इकोनॉमी’?

जानिए कैसे बजट 2025-26 जहाज तोड़ने (शिप-ब्रेकिंग) के व्यवसाय को नया जीवन देकर पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। पढ़ें पूरी जानकारी!

बजट 2025-26: जहाज तोड़ने की रीसाइक्लिंग से बनेगी 'गोल्डन इकोनॉमी'?

कचरे को कमाई में बदलने की कला– यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि बजट 2025-26 का बड़ा लक्ष्य है। इस साल केंद्र सरकार ने 'सर्कुलर इकोनॉमी' (चक्रीय अर्थव्यवस्था) को बढ़ावा देने के लिए एक अनोखा कदम उठाया है: जहाज तोड़ने (शिप-ब्रेकिंग) के कारोबार को नई ताकत देना। लेकिन सवाल यह है कि पुराने जहाजों को तोड़कर भारत कैसे बना सकता है हरित भविष्य? आइए समझते हैं पूरी कहानी।

क्या है शिप-ब्रेकिंग? समुद्र के 'कबाड़़' से कैसे बनती है दौलत?

शिप-ब्रेकिंग यानी पुराने और बेकार जहाजों को तोड़कर उनके लोहा, स्टील, और दूसरे मटीरियल को रिसाइकल करना। यह काम भारत में गुजरात के अलंग जैसे तटीय इलाकों में दशकों से चल रहा है। लेकिन अब सरकार इसे 'सर्कुलर इकोनॉमी' का हीरा मानती है।

सर्कुलर इकोनॉमी क्या है?

इसमें कचरे को दोबारा इस्तेमाल कर नई चीजें बनाई जाती हैं। जैसे पुराने जहाज का स्टील नए निर्माण में लगेगा, इससे पर्यावरण भी बचता है और खर्च भी कम होता है।

बजट 2025-26 में क्या है खास?

इस साल के बजट में शिप-ब्रेकिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं पेश की गई हैं:

1. टैक्स छूट और सब्सिडी:

.जहाज तोड़ने वाली कंपनियों को नए मशीनरी खरीदने पर 30% तक की सब्सिडी।
.रिसाइकल किए गए स्टील पर जीएसटी में छूट।

2. ग्रीन प्रोटोकॉल:

.पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना जहाज तोड़ने के लिए नए दिशा-निर्देश।

3.स्किल डेवलपमेंट:

. श्रमिकों के लिए विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम, ताकि काम सुरक्षित और आधुनिक तरीके से हो।

क्यों जरूरी है यह कदम?

1. पर्यावरण बचाओ, पैसा कमाओ:

.एक जहाज से 95% तक मटीरियल रिसाइकल होता है। इससे नए स्टील बनाने के मुकाबले 40% कार्बन उत्सर्जन कम होता है।

2. रोजगार के अवसर:

.अलंग जैसे शिप-ब्रेकिंग यार्ड में 50,000 से ज्यादा मजदूर काम करते हैं। नई नीतियों से यह संख्या दोगुनी हो सकती है।

3.आत्मनिर्भर भारत:

भारत दुनिया का 30% शिप-ब्रेकिंग कारोबार करता है। इसे बढ़ाकर हम स्टील आयात पर निर्भरता घटा सकते हैं।

चुनौतियां:ग्रीन' दावों के पीछे का सच

हालांकि यह योजना बेहद अच्छी लगती है, लेकिन कुछ सवाल अभी भी बाकी हैं:
मजदूरों की सुरक्षा: शिप-ब्रेकिंग में काम करने वाले मजदूर अक्सर जहरीले केमिकल्स और दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। क्या नई नीतियां उनकी जिंदगी बदल पाएंगी?
पर्यावरणीय नुकसान: जहाजों में मौजूद एस्बेस्टोस और ऑयल लीक होने से समुद्री प्रदूषण का खतरा बना रहता है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा:बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश भी इस कारोबार में भारत को टक्कर दे रहे हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

डॉ. राजीव शर्मा, पर्यावरणविद:

"शिप-ब्रेकिंग को सर्कुलर इकोनॉमी से जोड़ना सही कदम है, लेकिन सरकार को सख्त निगरानी व्यवस्था भी बनानी होगी।"

अनिल गुप्ता, शिप-ब्रेकिंग ओनर (अलंग):

"टैक्स छूट से हम नई टेक्नोलॉजी ला पाएंगे, जिससे काम आसान और सुरक्षित होगा।"

आम आदमी को क्या मिलेगा?

सस्ता स्टील: रिसाइकल्ड स्टील से निर्माण सामग्री सस्ती होगी, जिससे घर बनाने का खर्च घटेगा।
हरित भविष्य:कम प्रदूषण का मतलब है स्वच्छ हवा और पानी।
रोजगार: गुजरात, केरल और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में नौकरियां बढ़ेंगी।

कचरा नहीं, संपदा है पुराना जहाज!

बजट 2025-26 का यह फैसला साबित करता है कि भारत अब 'लीनियर इकोनॉमी' (कचरा पैदा करने वाली व्यवस्था) से आगे बढ़ रहा है। शिप-ब्रेकिंग को ग्रीन टेक्नोलॉजी और मजदूर हितों से जोड़कर ही हम वाकई में 'सर्कुलर इकोनॉमी' का सपना पूरा कर पाएंगे।

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